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शश्व॒द्धि व॑: सुदानव॒ आदि॑त्या ऊ॒तिभि॑र्व॒यम् । पु॒रा नू॒नं बु॑भु॒ज्महे॑ ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

śaśvad dhi vaḥ sudānava ādityā ūtibhir vayam | purā nūnam bubhujmahe ||

पद पाठ

शश्व॑त् । हि । वः॒ । सु॒ऽदा॒न॒वः॒ । आदि॑त्याः । ऊ॒तिऽभिः॑ । व॒यम् । पु॒रा । नू॒नम् । बु॒भु॒ज्महे॑ ॥ ८.६७.१६

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:67» मन्त्र:16 | अष्टक:6» अध्याय:4» वर्ग:54» मन्त्र:1 | मण्डल:8» अनुवाक:7» मन्त्र:16


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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - सभासद् कैसे होने चाहियें, इसका वर्णन इसमें है। ये (क्षितीनाम्) मनुष्यों के मध्य (ये+मूर्धानः) जो गुणों के द्वारा सर्वश्रेष्ठ हों, (अदब्धासः) दूसरों की विभूति, उन्नति और मङ्गल देखकर ईर्ष्या न करें, (स्वयशसः) अपनी वीरता, सद्गुण विद्यादि द्वारा और परिश्रम करके जो स्वयं यश उत्पन्न करते हों, पुनः जो (अद्रुहः) किसी का द्रोह न करें, वे ही सभासद् हो सकते हैं और वे ही (व्रता+रक्षन्ते) ईश्वरीय और लौकिक नियमों को भी पाल सकते हैं ॥१३॥
भावार्थभाषाः - जो समय-समय पर समाजों में श्रेष्ठ गुणों से भूषित हों, वे सभासद् चुने जाएँ ॥—१३॥
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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - ये सभासदः ! क्षितीनाम्=जनानां मध्ये। मूर्धानः=श्रेष्ठा इत्यर्थः। पुनः। क्षितीनाम्। अदब्धासः=अहिंसकाः। पुनः। स्वयशसः=यशसा भासमानाः। पुनः। अद्रुहः=अद्रोग्धारः। ते खलु। व्रता=व्रतानि=नियमान् रक्षन्ते ॥१३॥